Last modified on 17 अप्रैल 2010, at 21:37

सबसे बड़ी खबर / कुमार सुरेश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:37, 17 अप्रैल 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कितनी ही बातें
जो हमारे नियंत्रण में नहीं हैं
हो जातीं हैं नियंत्रित ढंग से
जैसे सूरज बिना आवाज़ अँधेरा चीर कर
समय पर निकल आता है
साबुत निकल आती है चेतना
अँधेरी खोह से

तय समय पर बरस जाती है ओस
नहाकर खाना बनाती हैं पत्तियाँ
जग जातें हैं पक्षी
गिलहरियाँ काम से लग जातीं हैं
चहचहाने और चिहुकने की आवाज़ें
सबको बतातीं हैं
दुनिया अभी रहने लायक है

दूध वाला समय पर आ जाता है
चाय मिल जाती है अपने वक़्त
बदस्तूर आ जाता है अख़वार

दफ़्तर और ट्रेफ़िक की सारी मशक्कतों के बीच
कुछ न कुछ ऐसा हो ही जाता है
नयी करवट लेती है उम्मीद

वापस लौटना घर
उस प्यारी के पास
जो मेरा इन्तज़ार करती है
हमेशा बड़ा सुकून है

छलछलाता है बेटी का संतोष
पड़ोसी की एक साल की नातिन लगाती है
ताता दादा की अटपटी ज़ोर की पुकार
तन्द्रा से जाग उठता है घर

रात अँधेरी घाटी में अकेले उतारते वक़्त
रहता है विश्वास
कल फिर सुबह होगी
फिर होगा एक ख़ुशनुमा दिन
और वह सबसे बड़ी ख़बर ख़ुशी
लौटेगी बार-बार छोटी-छोटी बातों में