भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूमिका में कविता / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:48, 13 मई 2010 का अवतरण
रचनाकार : मुकेश मानस
भूमिका में कविता
जिन बच्चों के पास
चरखड़ी और पतंग नहीं थी
उन बच्चों ने खुद को
चरखड़ी बना लिया
और खुद को ही पतंग
वो बच्चे अभी तक
खुशियों के अम्बर को
छूने की कोशिश में लगे हैं
बार-बार गिरते
बार-बार उठते
उन्हीं बच्चों में
शामिल है ये कवि
और उसकी कविता
2001