भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महानगर / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 5 जून 2010 का अवतरण
महानगर
लोगों को ढूँढता फिरा मैं
लोग नहीं मिले
घर मिले बहुत
मार तमाम घर
घर थे बहुत
और लोग नहीं थे घरों में
घर ढूँढता फिरा मैं
घर नहीं मिले
लोग मिले बहुत
मार तमाम लोग
लोग थे बहुत
और उनकी आंखों में घर थे
1998