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कुछ और कविताएं / मुकेश मानस

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बोध ठहरता नहीं कुछ भी, कभी कहीं दिखता है जहाँ अंत होती है शुरूआत वहीं

         2008

सुख-दुख क्षण भर के लिये आता है सुख और छोड़ जाता है दुख अंतहीन समय के लिये

           2005

रूपक जीवन को आदमी जीवन भर एक रूपक की तरह जीता है और मौत रूपक तोड़ देती है एक क्षण में

   2004

याद किसी की याद आती रही रात भर और सुबह उठते ही देखा अपना चेहरा दर्पण में

          2004

नींद रात भर आती नहीं नींद रात गुज़र जाती है नींद की प्रतीक्षा में

       2005

जीवन इस निविड़ गहन अंधकार में जुगनू सा जो चमकता है जीवन है अपने समूचे यथार्थ के साथ

              2000

पहचान जब-जब ठोकर खाता हूँ खुद को पहचानने लगता हूँ थोड़ा और साफ़

     2004

उदास दिन कितने उदास दिन हैं जिन्हें जी रहा हूँ इन दिनों लगता है जैसे वक्त को पी रहा हूँ इन दिनों

         2005