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किसी तट पर / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

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किसी तट पर नहीं रुकता नदी की धारा का पानी

गुज़र जाता है जैसे वक्त की रफ़्तार का पानी


मैं सारे बादलों में देखता हूँ आग नफ़रत की

कोई भी मेघ बरसाता नहीं है प्यार का पानी


बुझा सकता नहीं जो आदमी की प्यास, तो तय है

भरा है क्षीरसागर में बहुत बेकार का पानी


भड़कते जा रहे व्यभिचार के बदनाम शोलों को

नहीं छूता किसी भी छोर पर आचार का पानी


मोहब्बत की जवां साँसों की गर्मी सह नहीं पाया

वो कितना सर्द है चौपाल की हुंकार का पानी


न कोई दीप ही जलता, न पत्थर ही पिघलता है

उतरता जा रहा सुर ताल की झंकार का पानी


चलो माना बहुत रंगीन हैं दो चार तस्वीरें

मगर सौ चित्र धोये जा रहा बौछार का पानी


सजावट देखकर घर की कहाँ अन्दाज़ होता है

कि हर दीवार में ही मर रहा दीवार का पानी।