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हमको मरने के / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

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हमको मरने के लिए कुछ ज़िंदगी भी चाहिए

तीरगी मंज़ूर है, पर रोशनी भी चाहिए


रूह की हर बात मानें हम ज़रूरी तो नहीं

कुछ तो आज़ादी हमारे जिस्म को भी चाहिए


जीतने भर से लड़ाई ख़त्म हो जाती नहीं

हार का अहसास कुछ तो जीत को भी चाहिए


उम्र के हर दौर को भरपूर जीने के लिए

थोड़ा गम़ भी चाहिए, थोड़ी ख़ुशी भी चाहिये


प्यास बुझने का तभी सुख है कि बाक़ी भी रहे

तृप्ति के एहसास में कुछ तिश्नगी भी चाहिये


दर्द ही काफ़ी नहीं है शायरी के वास्ते

कुछ सदाक़त और आवारगी भी चाहिये


हम ख़ुदा से उम्र भर लड़ते रहे यूँ तो पराग

पर वो कहते हैं कि थोड़ी बंदगी भी चाहिए