Last modified on 30 जून 2010, at 23:41

नदिया की लहरें / अवनीश सिंह चौहान

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:41, 30 जून 2010 का अवतरण (नदिया की लहरें /अवनीश सिंह चौहान का नाम बदलकर नदिया की लहरें / अवनीश सिंह चौहान कर दिया गया है)

देखो, आईं नदिया की लहरें
अपना घर-वर छोड़ के
डोलें बस्ती-बस्ती, जंगल-जंगल
रिश्ते-बंधन तोड़ के

मीठी बातें उदगम की
उदगम पर ही छूट गईं
भावों की लड़ियाँ कैसे
राहों में ही टूट गईं?

कितनी निर्मोही, यों बनी बटोही
अपनों से मुँह मोड़ के!

सीखा तपना पत्थर पर
काँटों पर चलते रहना
कि प्यास बुझाना प्यासे की
सीखा खुद जलते रहना

है चाहा कब प्रतिदान लहर ने
दरकी धरती जोड़ के?

मीलों लम्बा सफ़र पड़ा
साँसें कुछ ही शेष बचीं
अब भी उत्साह बना है
सच है थोड़ी कमर लची

कभी मुहाने पहुंचेंगी लहरें
सारी परतें तोड़ के