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डविल्स थ्राट / कर्ण सिंह चौहान

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डविल्स थ्रोट<ref>ग्रीक सीमा पर एक भयंकर गुफ़ा में उफनती नदी किंवदतियों भरी</ref>

खेल रही है नदी
भँवरो में
चक्कर काट रही है नदी

खेल में दिपती
दो खँजन आँखें
भवों के इशारे पर
खाँडे की धार नापते पाँव
बुला रही है नदी ।

बाहर भीतर अनहद
घुप्प अँधेरे में
छू रही है नदी ।

जो भी यहाँ आया
डूबा
कभी मिला नहीं ।

ऊँचे पहाड़ के बंद उदर में
गरजती हो तुम
गरजते हैं सौ पहाड़
ग्रीस का सीना सीमा पार
पत्थरों पर खुदे हैं
तुम्हारी बलि चढ़े नाम
पर्यटक आते हैं
पढ़ने, सुनने
तुम्हारे लेख
तुम्हारे स्वर
तुम्हीं में समाने ।

वे आते हैं
चहकते
खेलते
और डूबकर जाते हैं
अकेले
अस्तित्वहीन
फिर भी बार-बार आते हैं ।


शब्दार्थ
<references/>