भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मदारी की लड़की / भारतेन्दु मिश्र
Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:46, 5 जुलाई 2011 का अवतरण
मदारी की लड़की
सपनों की किरचों पर
नाच रही लड़की ।
अपने ही
झोंक रहे चूल्हे की आग में
रोटी-पानी ही तो है इसके
भाग में
संबंधों के अलाव ताप
रही लड़की ।
ड्योढ़ी की
सीमाएँ लाँघ नहीं पाई है
आज भी मदारी से बहुत मार
खाई है
तने हुए तारों पर काँप
रही लड़की ।
तुलसी के
चौरे पर आरती सजाए है
अपनी उलझी लट को फिर फिर
सुलझाए है
बचपन से रामायन बाँच
रही लड़की ।