Last modified on 20 सितम्बर 2011, at 17:23

गुजरिया / भारतेन्दु मिश्र

डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:23, 20 सितम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रह-रह घबराता है अब मोरा जिया
चलो चलें गोदना गोदाएँ पिया।

हाथों मे हाथ लिए
मेले मे साथ चलें
मैं सब कुछ हार चुकी
तुम सब कुछ जीत चुके
तुम्ही कहो जादू ये कौन सा किया।

दाहिनी कलाई पर
नाम मै लिखाऊँगी
गाँव की गुजरिया हूँ
भूल नही पाऊँगी
लुका-छिपी मे अब तक बहुत कछ हुआ।

हँसते हो-गाते हो
सपनों में आते हो
धान जब लगाते हो
तुम बहुत सुहाते हो
आँखों मे चाहत का रंग भर दिया।