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गूंज / नवनीत पाण्डे
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जहां कहीं भी होगी गूंज
वह सुनेगा
पहचानेगा
और आत्मसात् कर लेगा अपने भीतर
भले ही
डराने लगे भूत
न संवरे भविष्य
गड़बड़ा जाए आज