भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माहिये-३ / रविकांत अनमोल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:41, 6 अगस्त 2010 का अवतरण
११
भीगी सी फ़ज़ाएँ हैं।
आँसू आँखों में,
होंटों पे दुआएँ हैं।
१२
अलमस्त हवाएँ हैं
मौसम भीगा सा,
खुशरंग फ़ज़ाएँ हैं।
१३
ख़ुशरंग गुलाबों सा ।
आँख में रहता है
तेरा रूप है ख़ाबों सा ।
१४
पत्तों का है रंग पीला ।
अश्क़ों की बारिश ने
चिट्ठी को किया गीला ।
१५
दिन रैन बरसते हैं ।
दीद की चाहत में
दो नैन तरसते हैं ।