भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थरथराता रहा / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 15 अप्रैल 2011 का अवतरण
’एक विचित्र प्रेम अनुभूति'
थरथराता रहा जैसे बेंत
मेरा काय...कितनी देर तक
आपादमस्तक
एक पीपल-पात मैं थरथर ।
काँपती काया शिराओं-भरी
झन-झन
देर तक बजती रही
और समस्त वातावरण
मानो झंझावात
ऐसा क्षण वह आपात
स्थिति का