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नए शहर में बरगद / केदारनाथ सिंह

जैसे मुझे जानता हो बरसों से
देखो, उस दढ़ियल बरगद को देखो
मुझे देखा
तो कैसे लपका चला आ रहा है
मेरी तरफ़

पर अफ़सोस
कि चाय के लिये
मैं उसे घर नहीं ले जा सकता