भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओळखतां थकां ई / नीरज दइया
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:46, 24 अक्टूबर 2010 का अवतरण
म्हैं गफल रैयो
थे होकड़ा लगा लगा’र
रचता रैया
नित नूंवां रास !
म्हनै अळघो राख’र सांच सूं
थां साज्या- थांरा मतलब ।
आज म्हैं
थांनै ओळखता थकां ई
थांरा होकड़ा उतारण री ठौड़
होकड़ा लगावण री सोचूं ।