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सागर था वह / केदारनाथ अग्रवाल

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सागर था वह
आकर मुझमें, चला गया जो
मुझे डुबाकर और
भुलाकर चला गया जो,
फिर न लौट आने के खातिर,
अंत समय तक टेर-टेरकर मरुथल में ही
रह जाने के खातिर,
फिर न गीत गाने के खातिर

रचनाकाल: ०४-०२-१९६१