कविता- पगफेरौ /मणि मधुकर
किण ठौड़ धरूं पगां रा आयटण
कठै जाय मेलूं आंगळियां रै कटकां री तिजूरी
आ थकांण आ दोगाचींती तल्लामेली
म्हारै मांयकर नीसरै जगां-जगां
घड़ी-घड़ी ओसरै
पण म्हैं धायौ-धबस्यौ
नीं चावूं थ्यावस, नीं उडीकूं पांणी
नीं मांगू गादी नै गळगच्च सोगरा
म्हैं सौदूं अर बारुंबार सौदूं एक चिलकौ
एक पाधरौ कांकड़
एक सबद रौ झालौ
जिण रै पांण म्हैं पगफेरौ ले सकूं
ओजूं सरू कर सकूं वां रूस्यौड़ा सूं रिगल
रळखळ रावळा सूं राड़
घणां दिन व्हिया म्हांनै देखतां कै चायै
गायटा रा गायटा नाज गेरौ
थोथ में रेवड़ उछेरौ
भासा री छाछ बाल्टियां भर भरनै प्यावौ
हाडां रौ चूरमौ बणाय खवादय़ौ
ऊपर सूं लोई रा धारौळा न्हाखौ
पण नीं ढंपी जा सकै
नीं जड़ी जा सकै
धणी-धोरियां री मूंफाड़
इण वास्तै
पाछौ पळट
म्हैं धोखणी चावूं घिरणा`कै
भांगूं गढ़ गोखां रा लिलाड़
बाढ़ूं सिंघासण री सागीड़ी नाड़
मांडूं एकर फेरूं मांडूं राजा-रावळा सूं राड़
म्हैं जाणूं कै अकास अबै म्हारौ नीं
अकासवांणी रै
आळै बैठय़ै सूवटै रौ है
जितरी सीख मिलै उतरौ ई बोलै
दाणां चुगै मिटठ़ूराम बाजै
दिल्ली रौ दाळद दकाळां में गाजै
धिगाणै धिराणी पूंन
पानका झाड़ती
डाळय़ां बिचाळै सटीड़ा पाड़ती
मोकळा बरड़ाटा करै
पण दावै में दोलड़ा व्हियौड़ा दरखत
फगत मुजरौ मांडै
नकटा ओ नेतिया ! कठै गिया थांरा दंद-फंद
कुण झीर दिया थांरां गाभा ?
कुण छांगनै कर दियौ थांनै नागौ-निस्सरड़ौ ?
थूं मर ज्यावै पण आसण नीं छोडै
देख कदै काच में ई देख
थांरौ उणियारौ थांनै फिटट़ौ गेरै धुरकार भांडै ?
नारां जैकारां बीच बजारां
आवै वा अपसरा
सणसणांवती आवै
लोगां रा मूंडा बायौड़ा ई रै ज्यावै
लालटण रै थंमै सारै ऊभचूभ म्हैं
आंख्यां नै मीचूं`र खोलूं
कोइयां में बळत
बांफणां में झळ
आं काळां रौ काळस
जीव री आंटी में ऊफणै एक ई बात
कै भूक नै बगत रौ औ राजीपौ खोटौ है
पेट रै ऊंदरां नै हाल
मुटठ़ी भर छाणस रौ टोटौ है
पण रांणी जांणै मंतर
धिरांणी जांणै टूंणा
वा विसास कर चालै कै
आदमी रौ ओचांट
थेपड़ी नै काळी हांडी सूं आगै नंी पूगै
खेतां में बाजरड़ी रै डोकां री भांत
डाकण रा दांत अबै उगाया जा सकै
जीतै वौ ई जिकौ जबांन री कतरणी कंचकावै
अर सगळी स्यांणफ रौ
निचोड़ औ कै लड़ाई
बूकियां सं नईं थूंकियां सूं लड़ी जावै
थूकौ तगार में
थूकौ पगार में
जे थूक नीं ऊतरै तौ खांसी रा ठसका भरौ
खंखारां सागै किल्ला फत्तै करौ !
किरसांण सभा रै
सिकेटरी खन्नै एक कांगसियौ है`र वौ
जद बिसूंणी लेवै
आपरा पटट़ा पैलां काढ़ै
फेर गुदद़ी में कुचरणी कर नै मैल रौ
बटिट़यां बणाय देवै
तै`सील सूं आयौ एड़ौ असवार
कै लुगायां रा माथा उघाड़ै
नै टीका चेप देवै
कदै एक टीकै रा हजार
कदे पांच सैंकड़ी रिपिया धांमै
धीजौ राखण रौ जाप करै
चुंधी-चींथी आंख्यां सूं आंसूड़ा ढोळै
जबाड़ी पंपोळै
लुगायां कुभागण इचरच में आंतरै गियौड़ी
असवार री ओळख नीं कर सकै
टीकां री टांच्यां समझै कीकर
लोट करड़ा धवळा लोट
कांचळी रै ओलै धर लिया जावै
अर वीं कांचळी रा कसणां फेरूं कदै ई नीं खुलै
असवार जिण पगां जिण पंथा आयौ
उणी पगां उणी पंथां पूठौ मुड़ ज्यावै
पण भूंडा बेमाता रा लेख कै
पंथ रगदौळतौ
नीं बावड़ै एक मायड़ रौ मूंछाळौ पूत
एक बैन्नड़ रौ बीर एक अणदेख्यै टाबर रौ बाप
एक गूंगी एक बोळी एक अणखांवणी लांण
भींता संग रोवै
जिनगी भर ढोवै रंडापौ नै तिरस रौ सराप
आ कैड़ी अणूंती ओपमा कवी काळीदास !
कै गोदी रौ भार तौ भरत ई रवै
पण देस बण ज्यावै दुरवासा
सिरेपंच सूत्यौ 'पंचात भवण` में
मुळ री धणियाप हांकण वाळा कठै है कांई ठा
आधा अमरीका आधा बिलायत
बच्या-खुच्या फाइलां रै फीतै बंधियौड़ा
वै नीं जींवतड़ा रौ दरद जांणै
नीं मरियोड़ां री गत पिछांणै
दूर कोसां सून्याड़ रै सिखरां माथै सूकै
एक ल्हास
सींव सूं सगपण निभावै
सगती सुरापण रौ म्यांनौ बतळावै
पण बडेरा-म्हांटा मंतरी जद सुंवाज करै
काखां में खाज करै
रगत री रम्मतां कद देखै
किण खातर बांचै मरण-त्यूंआर रा पानां
वै तौ रातींदौ पळौटता
स्यांती स्यांती बखांणता
अदळा-बदळी रा खाता खोलै
इण हाथ देय
उण हाथ लेय नै उत्तरपात्तर व्है ज्यावै
जिण जमींन सारू सीस दिया
सांस दिया
दी एक आतमां हरी-भरी
कलमां री चूंच
सिरोमण्यां री हूंस
पळ में बणाय देवै
वी मूंघी माटी नै ओपरी !
गोळियां सूं छालणी व्हियौड़ा
मांदगी में मुगती री मेड़ी
कै मीनकी री म्याऊं साम्हीं गियौड़ा सरीर
किण नै ओळमां देवै
कुण ध्यारै वां रौ कसकणौ
कुण गिनरत करै चिराळी 'रांम दुहाई` री
कुण संवेटै रूंआ-रूंआं रड़कती
रीळां रा सनेसड़ा
घणी ताळ घोबा सिंया
घणी घणी राखी कड़ूंबै री काण
भाईड़ा रै भायला ! अबै थूं मती अंगेज
आं कुबध्यां रौ किरियावर
आं काळां रौ काळस
मूंधौ मार कूंपलौ
परै बगाय पांगळा रा पिचरंगौ मोळिया
थूं जोध जुंवान थूं पिरथीपाळ
थूं आमण-दुमणौ क्यूं
उटठ़ आखड़ मत्ती सरधा सांम्ह
ऐड़ै-छेड़ै उडीक राखता डांखळा भेळा कर
बासती बाळ
खूंन निवायौ राख रै मौभी सावचेती बरत
खीरा सिळगा
खीलां नै रोप वां में आडा अर ठाडा
जद चंमचंम चिणगारय़ा छूटण लागै
थूं करड़ी छाती कर नै डांम वै सगळी
छळगारी जीवड़ियां
जिकी वाचा तौ देवै
पण सांचा नीं देवै
भुळस वै भेख वै भबक्यां रा भोदेव
जिकां री बांझड़ी बेगार
सालूंसाल थांरौ कस सूंतै
बेलीड़ा ! जे थूं होस सांभळै
काया नै काठी बंट लेवै
तो ऐड़ौ बगनौ बैरी कुण
जिकौ थांरी औकात नै रणखेतां नूंतै ! !
('पगफेरौ' सूं)