कूख पड़यै री पीड़ / किशोर कल्पनाकांत
ओजूं एक चाणक्य
कूख मांय आग्यो है !
जापायत बणली अबकै
म्हारली भावना
जुगां सूं बाँझड़ी- कूख
बणसी अबै एक फल़ापतों- रुंख
आंगण बाजसी सोवनथाळ
फेरूँ कोई नी कैय सकै
कुसमो- काळ !
मानखै रो स्वाभिमान गासी मंगळगीत
होवै लागी अबै परतीत !
ओजूं एक चन्द्रगुप्त जामैला !
स्वाभिमान नै टीयो दीखावणयाँ रो
माथो भांगैला !
ऊथल़ो माँगेला
चाणक्य रा नीत-मंत्र !
चन्द्रगुप्त रो भुजबळ मांगेला
आपरो तंत्र !
विजै-गीत गवैला चारण- भाट
उतर रैयो है
धरती उपरां एक आतमबळ विराट !
इतिहास दुसरावैला आपरी रीत
होवै लागी अबै परतीत
अणतकाळ सूं रुपयोड़ी है
एक जंगी-राड़
पटकपछाड़
देव-दाना रै बीच कद रैयो सम्प
दिसावां माँय भरीजग्यो है कम्प !
जद-कद आडा आवै दधिची रा हाड़
स्याणा कैवे क जड़ लेवो किंवाड़
राड़ आगै बाड़ चोखी
पण के ठा' ! कुण, किण रो है दोखी !
बरतीजै, जद बिरत्यां
गमज्यावै सिमरत्यां
सुभावां री होवै ओळखाण
बिरळबाण होय जावै
धरम -करम अणजाण
जद होवण लागै इसी परतीत
अर भीसळ जावै मानखै री नीत
जद न्याय नै
गोडालाठी लगायनै
नाख देवै पसवाडै
नागी नाचण लागै अनीत चौडै.धाडै.
जणा भावना'र विवेक रै संजोग
मानखै रै गरभ पडै.
बो एक जोग !
काईं होवै लागी इसी परतीत ?
बोल-बोल !
मनगीत !
ओ अनुभव है जुगां री एक सांच
ऐकर गीता नै बांच !
रामायण नै गा !
उण कथ सूं हेत लगा !
जिको है बिरम रै उणियार !
बो-ई धरै चाणक्य-चन्द्रगुप्त रो आकार !
नांवसोक मन माँय चींत !
द्खाँ, किसीक होवैं परतीत !
कितराक दिन चालसी
पाखण्ड - तणो वंस ?
छेवट, इण बजराक सूं मरयां सरसी कंस !
घणा दिन नी रैया है बाकी
चाल रैयी है काळ तणी चाकी
नौवो-म्हीनो लागग्यो है आज
नेडै. है जै अर जीत !
होवै लागी परतीत !
मै,
पीड़ रै साथै उछाव नै अनुभवूं !
मैं,
काळधणी नै माथो निंवू !
म्हारी पीड़
एक खुशी री पीड़ है
काळधणी री पगचाप
बगावत रो घमीड. है !
साव दीसै ममता
जामण री खिमता
भविष्य रो एक सुपनो प्यारो
म्हारी आँख रो तारो
लाखूंलाख सुरजां सूं बेसी है !
सांसां माँय बापरै !
बो नी है अबै आन्तरै !
बो-ई है म्हारो महागीत
बो-ई है सागण परतीत !