भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोटो डर!/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:17, 16 नवम्बर 2010 का अवतरण
रोही में फिर ल्याळी
आभै में गरणावे सिकरा
गेलां में रळकै वासक नाग
पण सैं स्यूं मोटो डर भुख,
जको कोनी बैठण दे
लरड़ी ने बाडै में
कबूतर नै आळे में
पग ने घर में !