Last modified on 25 फ़रवरी 2011, at 12:26

लिखा समय ने / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:26, 25 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान }} {{KKCatNavgeet}} <poem> लिखा समय …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लिखा समय ने
लिखा समय ने सारा मधुवन
लकड़कटों के नाम
कब आवोगे शंख बजाने
वो मेरे घनश्याम
बहरी रैन हुये, दिन गंूगे
धूप समेटे पंख,
पानी पानी चीख रहे हैं
पड़े रेत पर शंख
पान, फूल, पत्तों पर पसरी
सन्नाटे की शाम
काली झील बदलता मौसम
आसमान बदरंग
हंसो के भी बदल गये हैं
रहन सहन के ढंग
चितकबरी चीलों के डैने
बांट रहे कोहराम
बुलबुल मैना कोयल भूली
अपनी मीठी तान,
हुआ हुआ के बोल बेसुरे
खाये जाते कान ,
मांग रहा सूरज धरती से
उजियारे के दाम
कब आवोगे शंख बजाने
वो मेरे घनश्याम?