Last modified on 27 जून 2007, at 09:03

चे / विष्णु खरे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:03, 27 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकारः विष्णु खरे Category:कविताएँ Category:विष्णु खरे ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ व...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रचनाकारः विष्णु खरे

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


वक़्त साधती बहसों और धूर्त समझौतों के बाद

एक तंग आदमी को कोई हाथ का काम दो

और एक दूसरे की तरफ़ न देखकर भी सब समझ लेने वाले चंद दोस्त

और खुले आसमान के नीचे असंभव पड़ाव

जहाँ से सब कुछ एक गंभीर मज़ाक की तरह संभव हो

फिर हो एक लम्बा और बेरहम मुक़ाबला

जिसमें कुछ भी अक्षम्य न हो

निर्मम हमलों आगे बढ़ने पीछे हटने

कुछ उनके लोग गिरा देने कुछ अपने साथी गँवा देने

और चिरायंध और अंतड़ियों के पहले दर्म्यान और बाद

सब कुछ जायज हो.


फिर विजय हो या उसका एकमात्र विकल्प

एक आजिज आए हुए शख़्स की

स्थिर होती हुई लेकिन खुली आँख हो

मँडराते हुए उतरते हुए गीध की पैनी आँख में सीधे देखती हुई

जो पराजय तो बिल्कुल नहीं है

और कुछ वह हो या न हो.