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यों तो उन नज़रों में है जो अनकहा, समझे हैं हम / गुलाब खंडेलवाल

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यों तो उन नज़रों में है जो अनकहा, समझे हैं हम
फिर भी कुछ है इस समझने के सिवा, समझे हैं हम

छोड़ दी सादी जगह ख़त में हमारे नाम पर
बेलिखे ही उसने जो कुछ लिख दिया, समझे हैं हम

प्यार की मंजिल तो है इस बेखुदी से दो क़दम
सैंकडों कोसों का जिसको फासला समझे हैं हम

आँखों-आँखों में इशारा कर के आँखों मूँद ली
रुक के दम भर पूछ तो लेते कि क्या समझे हैं हम!

देखकर तुझको झुका ली है नज़र उसने, गुलाब!
हो चुका है ख़त्म पहला सिलसिला, समझे हैं हम!