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हमारा प्यार जी उठता, घड़ी मरने की टल जाती / गुलाब खंडेलवाल


हमारा प्यार जी उठता, घड़ी मरने की टल जाती
जो तुम नज़रों से छू लेते तो यह दुनिया बदल जाती

उन्हीं को ढूँढती फिरती थीं आँखें जानेवाले की
न करते इंतज़ार ऐसे, किसी की रात ढल जाती

हम उनकी बेरुखी को ही हमेशा प्यार क्यों समझें!
कभी तो मुस्कुरा देते, तबीयत ही बहल जाती

उन्हीं को चाहते हैं अपने सीने से लगा लें हम
की जिनकी याद आते ही छुरी है दिल पे चल जाती

वे दिन कुछ और ही थे जब गुलाब आँखों में रहते थे
बिना ठहरे ही डोली अब बहारों की गुज़र जाती