Last modified on 2 जून 2010, at 11:59

विविधा / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:59, 2 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=रूप की धूप / गुलाब खंडेलव…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


कभी वसंत इधर से निकल गया होगा
पलाश-दग्ध अभी तक पुकारता हूँ मैं
चाँद जो छोड़ गया नील गगन को उसका
अदृश्य बिम्ब चतुर्दिक् निहारता हूँ मैं
 
झनझनाया जहाँ सितार तुम्हारे स्वर का
आज हर ईंट वहाँ की मुझे बुलाती है
उर्वशी लौट गयी स्वर्गपुरी को लेकिन 
पुरुरवा मैं कि मुझे नींद नहीं आती है