Last modified on 8 सितम्बर 2011, at 11:42

न किसी का घर उजडता, न कहीं गुबार होता / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र" }} {{KKCatGhazal}} <poem> न किसी का घर उ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


न किसी का घर उजडता, न कहीं गुबार होता
सभी हमदमों को ऐ दिल, जो सभी से प्यार होता

ये वचन ये वायदे सब, कभी तुम न भूल पाते
जो यकीन मुझपे होता, मेरा एतबार होता

मैं मिलन की आरजू को, लहू दे के सींच लेता
ये गुलाब जंदगी का, जो सदा बहार होता

कोई डर के झूठ कहता, न ही सत्य को छिपाता
जो स्वार्थ जंदगी का, न गले का हार होता

मैं खुद अपनी सादगी में, कभी हारता न बाजी
तेरी बात मान लेता, जो मैं होशियार होता