न किसी का घर उजडता, न कहीं गुबार होता
सभी हमदमों को ऐ दिल, जो सभी से प्यार होता
ये वचन ये वायदे सब, कभी तुम न भूल पाते
जो यकीन मुझपे होता, मेरा एतबार होता
मैं मिलन की आरजू को, लहू दे के सींच लेता
ये गुलाब जंदगी का, जो सदा बहार होता
कोई डर के झूठ कहता, न ही सत्य को छिपाता
जो स्वार्थ जंदगी का, न गले का हार होता
मैं खुद अपनी सादगी में, कभी हारता न बाजी
तेरी बात मान लेता, जो मैं होशियार होता