Last modified on 8 अक्टूबर 2007, at 20:49

किसी से कहने की न बात / ओसिप मंदेलश्ताम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:49, 8 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओसिप मंदेलश्ताम |संग्रह=तेरे क़दमों का संगीत }} किसी स...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

किसी से कहने की न बात
भूल जा, जो देखा है, भ्रात!
पक्षी, बुढ़िया, कारागार
जो देखा, सब दे बिसार

या तुझे कभी घेरेगी फिर
ऎसी ज़ोरों की ठिठुरन
सूखे होंठों से रूधिर बहेगा
ख़राब रहेगा हरदम मन

याद कर तू ओसा का दाचा
स्कूल का बस्ता,पैंसिल, कापी
या झड़बेरियों वाला वह वन
जिसकी बेरी तूने कभी न चाखी


ओसा का दाचा=नगर के बाहर वनस्थली में बने ग्रीष्म-निवास को दाचा कहते हैं और ओसा कवि मन्देलश्ताम का घरेलू नाम था ।


(रचनाकाल : अक्तूबर 1930, तिफ़लिस)