Last modified on 6 अगस्त 2012, at 12:49

क्वाँर की बयार / अज्ञेय

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:49, 6 अगस्त 2012 का अवतरण

इतराया यह और ज्वार का
क्वाँर की बयार चली,
शशि गगन पार हँसे न हँसे--
शेफ़ाली आँसू ढार चली !
नभ में रवहीन दीन--
बगुलों की डार चली;
मन की सब अनकही रही--
पर मैं बात हार चली !

इलाहाबाद, अक्टूबर, 1948