Last modified on 3 सितम्बर 2008, at 01:48

किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी / फ़िराक़ गोरखपुरी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:48, 3 सितम्बर 2008 का अवतरण

किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

ये हुस्न-ओ-इश्क़ तो धोका है सब, मगर फिर भी


हजार बार ज़माना इधर से गुजरा

नई नई है मगर कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी


खुशा इशारा-ए-पैहम, जेह-ए-सुकूत नज़र

दराज़ होके फ़साना है मुख्तसर फिर भी


झपक रही हैं ज़मान-ओ-मकाँ की भी आँखें

मगर है काफ्ला आमादा-ए-सफर फिर भी


पलट रहे हैं गरीबुल वतन, पलटना था

वोः कूचा रूकश-ए-जन्नत हो, घर है घर, फिर भी


तेरी निगाह से बचने मैं उम्र गुजरी है

उतर गया रग-ए-जान मैं ये नश्तर फिर भी