बीड़ी फूँक फूँक
दिन अपने
काटे, राम भजन.
(१)
तीन माह से मिल वालों से
वेतन नहीं मिला
कितने घर ऐसे हैं, जिनमें
चूल्हा नहीं जला
आश्वासन की बूंदे कब तक
चाटे राम भजन.
(२)
'काम बन्द' की तख्ती टाँगे
रोज हुई हडतालें
उस पर बढती महंगाई ने
पतली कर दी दालें
चढ़े हुए कर्जे को
कैसे पाटे राम भजन.
(३)
लीडर की बातों मे आकर
मारी पैर कुल्हाड़ी
कई कई दिन, उसे कहीं भी
मिलती नहीं दिहाड़ी
दारू भी तो नहीं
कहाँ दुःख बाँटे राम भजन.