ख़ून ऐसा मुँह लगा है जंगलों को पार कर
गाँव तक आने लगे हैं भेड़िये अब मार पर
ख गईं चूज़ों को घर की बिल्लियाँ, परिवारजन-
झाड़ते फिरते रहे आक्रोश सब बटमार पर
हाथ काटा था मेरे दादा का जिस तलवार ने
मेरा पोता मारता है हाथ उस तलवार पर
कोई 'अभिमन्यु' निहत्था जाए न इस व्य़ूह में
‘आपका स्वागत है’ पढ़कर शहर की दीवार पर
खेत ,घर खलिहान अपना तो जला डाला गया
हम मगर बैठे ग़ज़ल लिखते रहे मल्हार पर.