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सड़क / अनूप सेठी


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|रचनाकार=अनूप सेठी
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सड़क बहुत चौड़ी और मजबूत बहुत

सीमेंट की सर्द सिल्लियाँ बेपरवाह



नीचे टेलिफोन और बिजली की तारों का जाल

पीने के पानी की नालियां

शहर भर की गँदगी के नाले चलाएमान

ऊपर हर प्रजाति का वाहन

अपनी अपनी आग बुझाने दौड़े जा रहा



अगल-बगल पारदर्शी अपारदर्शी चमचमाती दुकानें

डरावनी स्वागती मुद्रा में

लील जाने को आतुर

पान और चाय और मोचियों की टपरियाँ

बीच की खाली जगहों में या

इनकी वजह से दिखती खाली जगहों में

एक पैर पर खड़ी हुईं



दिन में एक बार तबेलों से निकल कर

उदासी सम्प्रदाय की गाएँ

जहाँसड़क सम्भ्राँत इलाके से गुजरती है

टहलती हैं, स्थिर हो जाती हैं, पसर जाती हैं

इतनी बेतकल्लुफी तो इस इलाके की जनानियों को

किटी, क्लब या पार्लर में भी नहीं नसीब

ज़ाहिर है घर या बाथरूम में तो नहीं ही



किसी बड़े से बड़े फन्ने खाँ की

ऊँची से ऊँची नाक वाली गाड़ी

मंहगे से मंहगे गराज में नियमित मालिश करवाने के बावजूद

सड़क के किसी भी छोर पर कभी भी धरना दे सकती है



जैसे गायों और गाड़ियों में कोई बहनापा हो

जैसे यही हैं सत्याग्रहियों की सच्ची वारिस



यही बचे रह गए हैं इच्छाधारी जीव

बाकी सब जो है सड़क पर या सड़क के बाहर

है किसी और के इच्छाधीन



पीठ पीछे कश हॉर्न हैं

ज़मीन को दहलाती घर्र घर्र है

भाग लो वरना कुचले जाओगे

सड़क छोड़ घुसोगे घरों में पनाह पाने

एक रात से ज्यादा गुज़ार नहीं पाओगे एक बार

बीच सड़क खदेड़े जाओगे बार बार



हांफते हुए शायद कहीं दिख जाए कभी

बरसात के बाद की भीगी हुई सड़क तस्वीर की मानिंद



किनारे पर चलते हैं असहाय बूढ़े, हारे हुए नागरिक

लुटे हुए बदहवास मुसाफिर

या जो अर्थी को कंधा दे रहे होते हैं

बच्चे भी बूढ़े होते हैं यहीं

भविष्य का बोझ लादे हुए



सड़क है ऐसी बेमुरव्वत

निशान कोई छूटता नहीं किसी तरह का



सड़क जिन्होंने बनवाई

नहीं है सड़क की लगाम उनके भी हाथ में।



(1998)