Last modified on 23 जनवरी 2009, at 09:55

गुलों में गरल / ओमप्रकाश सारस्वत

59.94.185.144 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 09:55, 23 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत |संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओमप...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिनको
 
दीवारो-दर मिल गए अब

उनसे
तूफां की चर्चा वृथा है
जिनके
पैरों में पर लग गए अब
उनसे
राहों की चर्चा से क्या है?
आंधियों के गणित सारे जिनके
लाभ के बीज गणकों में फल गए
जब से वे पाए गए काँच के घर
उनके पत्थर अदाओं में ढल गए
कल जो
इल्जाम-दर बाँ
टते थे उनसे
इज्जत की चर्चा से क्या है?


शंख जागरण का जो लिए थे
आज सोते- से जगते नहीं हैं
कल जो लड़ते थे सिंहासनों से
बैठे आसन पे थकते नहीं हैं
चर रहे जो
फसल कोंपलों की
उनसे
बीजों की चर्चा से क्या है?
शब्द सारे युवा कच्चा सोना
उनको जैसे भी तुम चाहो घड़ लो
ये तो पूर्ण समर्पित-सुमन हैं
इनको जिस मात्र देहरी पे धर लो
भर रहे जो
गुलों में गरल नित
उनसे खुशबू की चर्चा से क्या है?