भरिबो है समुद्र को शँबुक मे छिति को छँगुनी पै धारिबो है ।
बँधिबो है मृनाल सो मत्तकरी जुही फूल सोँ शैल बिदारिबो है ।
गनिबो है सितारन को कवि शँकर रज्जु सोँ तेल निकारिबो है ।
कविता समुझाइबो मूढ़न को सविता गहि भूमि पे डारिबो है ।
शंकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।