Last modified on 20 जुलाई 2009, at 14:13

जो रही और कोई दम... / आसी ग़ाज़ीपुरी

चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:13, 20 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: जो रही और कोई दम यही हालत दिल की। आज है पहलु-ए-ग़मनाक से रुख़स्त दि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जो रही और कोई दम यही हालत दिल की।

आज है पहलु-ए-ग़मनाक से रुख़स्त दिल की॥


घर छुटा, शहर छुटा, कूचये-दिलदार छुटा।

कोहो-सहरा में लिये फ़िरती है वहशत दिल की॥


रास्ता छोड़ दिया उसने इधर का ‘आसी’।

क्यों बनी रहगुज़रे-यार में तुरबत दिलकी॥