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जेल से लिखी चिट्ठियाँ-3 / नाज़िम हिक़मत

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घुटनों के बल झुका देख रहा हूँ धरती

देख रहा हूँ नीली चमकती कोंपलों से भरी शाखाएँ

वसन्त भरी पृथ्वी की तरह हो तुम, मेरी प्रिया !

मैं तुम्हें ताक रहा हूँ ।


चित्त लेटा मैं देखता हूँ आसमान

तुम वसन्त के मानिन्द हो, आसमान के समान

प्रिया मेरी! मैं तुम्हें देख रहा हूँ ।


गाँव में, रात को सुलगाता हूँ आग मैं, छूता हूँ लपटें

तारों तले दहकती आग की तरह हो तुम

प्रिये! मैं तुम्हें छू रहा हूँ ।


इन्सानों के बीच हूँ, प्यार करता हूँ इन्सानियत को

मुझे भाती है सक्रियता

मुझे रुचते हैं विचार

प्यार करता हूँ मैं अपने संघर्ष को

मेरे संघर्षों के बीच इन्सान हो तुम, मेरी प्रिया!

मैं तुम्हेण प्यार करता हूँ ।