Last modified on 13 नवम्बर 2008, at 20:57

ठोस सूरज / अनीता वर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:57, 13 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता वर्मा |संग्रह= }} <Poem> बर्फ़ की बेआवाज़ चादर ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बर्फ़ की बेआवाज़ चादर फ़ैली हुई है
जीवन से मृत्यु तक

पृथ्वी ख़ामोश है और धीरे-धीरे घूमती है
इच्छाओं की तरह
तारे चमकते हैं धीमे-धीमे
उन्हें कोई जल्दी नहीं है
एक ठोस सूरज मेरे भीतर जमी हुई शक्ल में है
मैं सोचती हूँ और नहीं सोचती
ख़याल सिर्फ़ मकड़जाल हैं
मस्तिष्क में चुपचाप अपने तार फैलाते हुए
दिन भर के कामों में उलझी हुई
मैं पाँव सिकोड़ती हूँ
उनके भीतर सो जाने के लिए