Last modified on 22 जुलाई 2007, at 23:10

इंतज़ार की रात / इब्ने इंशा

87.240.15.21 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:10, 22 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इब्ने इंशा |संग्रह= }} उमड़ते आते हैं शाम के साये दम-ब-द...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


उमड़ते आते हैं शाम के साये

दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी

एक दुनिया उदास है लेकिन

कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी

मुस्कराने लगा है- जाने क्यों ?

वो चला कारवाँ सितारों का

झूमता नाचता सूए-मंज़िल

वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी

वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल

डूबता जा रहा है - जाने क्यों ?


उफ़क़=क्षितिज; जबीं=मस्तक


(रचनाकाल : 1945)