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दूध की बूँदों का अवतरण / माखनलाल चतुर्वेदी

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गो-स्तनों पर घूमने वाली
अँगुलियाँ कह रही थीं!
दूध में मीठा न डालो
उसे अपमानित न कर दो,
प्राण ’थर’ बन तैरते हैं
उन्हें निष्प्राणित न कर दो।


रचनाकाल: प्रताप प्रेस, कानपुर-१९४४