रति रैन विषै जे रहे हैँ पति सनमुख ,
तिन्हैँ बकसीस बकसी है मैँ बिहँसि कै ।
करन को कँगन उरोजन को चन्द्रहार ,
कटि को सुकिँकनी रही है कटि लसि कै ।
कालिदास आनन को आदर सोँ दीन्होँ पान ,
नैनन को काजर रह्यो है नैन बसि कै ।
एरी बैरी बार ये रहे हैँ पीठ पाछे यातेँ ,
बार बार बाँधति हौँ बार बार कसि कै ।
कालीदास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।