Last modified on 13 दिसम्बर 2010, at 17:25

गिद्ध शाकाहारी नहीं होते/ प्रदीप मिश्र

Pradeepmishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:25, 13 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem> '''गिद्ध शाकाहारी नहीं होते''' आधी शताब्दी से ज़्यादा दिनों तक आ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गिद्ध शाकाहारी नहीं होते


आधी शताब्दी से ज़्यादा दिनों तक
आज़ाद रहने के बाद
मैं जिस जगह खड़ा हूँ
वहाँ की ज़मीन दलदल में बदल रही है
और आसमान गिद्धों के कब्जे में है

लोकतन्त्र की लोक को
सावधान की मुद्रा में खड़ा कर दिया गया है
हारमोनियम पर एक शासक का
स्वागतगान बज रहा है

जब जयगान
तीन बार गा लिया जाएगा
तब बटेंगी मिठाइयाँ
मिठाइयाँ लेकर
जब लोग लौट रहे होंगे घर
झपटे मारेंगे गिध्द

गिध्द शाकाहारी नहीं होते हैं
फिर क्या खायेंगे वे
शुन्यकाल के इस प्रश्न पर
देश का संसद मौन है ।