भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह तुम थीं / नागार्जुन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:47, 6 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: नागार्जुन Category:कविताएँ Category:नागार्जुन ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ कर ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: नागार्जुन

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


कर गई चाक

तिमिर का सीना

जोत की फाँक

यह तुम थीं


सिकुड़ गई रग-रग

झुलस गया अंग-अंग

बनाकर ठूँठ छोड़ गया पतझार

उलंग असगुन-सा खड़ा रहा कचनार

अचानक उमगी डालों की सन्धि में

छरहरी टहनी

पोर-पोर में गए थे टूसे

यह तुम थीं


झुका रहा डालें फैलाकर

कगार पर खड़ा कोढ़ी गूलर

ऊपर उठ आई भादों की तलैया

जुड़ा गया बौने की छाल का रेशा-रेशा

यह तुम थीं !


1957 में रचित