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सूरज की पेशी / कन्हैयालाल नंदन

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आंखों में रंगीन नजारे
सपने बङे-बङे
भरी धार लगता है जैसे
बालू बीच खङे.

बहके हुये समंदर
मन के ज्वार निकाल रहे
दरकी हुई शिलाओं में
खारापन डाल रहे
मूल्य पङे हैं बिखरे जैसे
शीशे के टुकङे.

अंधकार की पंचायत में
सूरज की पेशी
किरणें ऐसे करें गवाही
जैसे परदेसी
सरेआम नीलाम रोशनी
ऊंचे भाव चढे.

नजरों के ओछेपन
जब इतिहास रचाते हैं
पिटे हुये मोहरे
पन्ना-पन्ना भर जाते हैं
बैठाये जाते हैं
सच्चों पर पहरे तगङे

आंखों में रंगीन नजारे
सपने बङे-बङे
भारी धार लगता है जैसे
बालू बीच खङे.