भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज भी / अश्वघोष

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:57, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वक़्त ने बदली है सिर्फ़ तन की पोशाक
मन की ख़बरें तो आज भी छप रही हैं
                   पुरानी मशीन पर

आज भी मंदिरों में ही जा रहे हैं फूल
आज भी उंगलियों को बींध रहे हैं शूल
आज भी सड़कों पर जूते चटका रहा है भविष्य

आज भी खिड़कियों से दूर है रोशनी
आज भी पराजित है सत्य
आज भी प्यासी है उत्कंठा

आज भी दीवारों को दहला रही है छत
आज भी सीटियाँ मार रही है हवा
आज भी ज़िन्दगी पर नहीं है भरोसा।