भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब जैसा का तैसा / कैलाश गौतम

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:00, 17 अप्रैल 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ भी बदला नहीं फलाने!

सब जैसा का तैसा है

सब कुछ पूछो, यह मत पूछो

आम आदमी कैसा है।


क्या सचिवालय क्या न्यायालय

सबका वही रवैया है

बाबू बड़ा न भैय्या प्यारे

सबसे बड़ा रुपैया है

पब्लिक जैसे हरी फसल है

शासन भूखा भैंसा है।


मंत्री के पी. ए. का नक्शा

मंत्री से भी हाई है

बिना कमीशन काम न होता

उसकी यही कमाई है

रुक जाता है, कहकर फौरन

`देखो भाई ऐसा है'।


मन माफिक सुविधायें पाते

हैं अपराधी जेलों में

कागज पर जेलों में रहते

खेल दिखाते मेलों में

जैसे रोज चढ़ावा चढ़ता

इन पर चढ़ता पैसा है।