भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्रांतिकारी विचार / श्याम कश्यप

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:07, 5 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम कश्यप |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> तुम दफ़ना आए थे …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम दफ़ना आए थे उन्हें
पहाड़ों के पार
गहरी क़ब्रों के भीतर

लेकिन वहाँ हरी-हरी घास उग आई है

भीतर की नन्हीं-नन्हीं जीवित धुकधुकियाँ
भूरी जड़ों की उँगलियाँ पकड़ कर
बाहर फूट रही हैं

आज नहीं तो कल यहाँ फूल खिलेंगे
उड़ेगी सुगंध चारों ओर दिगंत में ।