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हरा और पीला / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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फैले हरे पर
क्यों सिमटी पीली रेखा -
मैंने ख़ुद को
तुम्हारी आँखों में देखा |
बाल मैं नहीं हूँ
लहराते धान का खेत में
जो कलगी बन जाऊँ
दृश्य जगत का सेत-मेत में
डंठल हूँ
इधर लेटा, उधर देता हूँ,
चारा हूँ पशुओं का
मत कहो प्रणेता हूँ |