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मौन का वैराग्य पिघला / केदारनाथ अग्रवाल
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मौन का वैराग्य पिघला
राग के रथ पर चढ़ा हिमवान जागा
सूर्य के सम्राट ने दिक् विजय कर ली
वायु ने वन-वासना के फूल खोले
आस्था की धूप नाची
चेतना की चातुरी के वृक्ष झूमे।
मोद के गायक पखेरू गुनगुनाए
सृष्टि को सीमांत तक
शृंगार ने शोभित किया
(इलाहाबाद से बाँदा की यात्रा में)
रचनाकाल: १६-०३-१९६२