Last modified on 27 अक्टूबर 2010, at 23:25

समय का संविधान / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:25, 27 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वृत्त पर वृत्त
खींचता चला जा रहा है मनुष्य
और फँसता चला जा रहा है वह
सीधी लकीर की खोज में
समय का संविधान
कोई रास्ता नहीं देता
ज्यामितिक हो गया है मनुष्य
वृत्त में जीने के लिए
और वृत्त में मरने के लिए
सीधी लकीर में चलने के लिए

रचनाकाल: १३-१०-१९६५