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कविता की गंभीर पंक्ति / केदारनाथ अग्रवाल

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कविता की गंभीर पंक्ति के शांत विभव के सुस्पंदन में
हम निहारते हैं लहराते देवदास का पेड़ मेड़ पर
और कथानक जब रूपायित हो जाता है सुंदरता से
हम अनुभव करते हैं रक्षित हुए किसी ‘हायोर्न’ कुंज का
लेकिन जब वह अपने चिंचित पंख पसारे आगे चलता
उसके मनमोहक आलेखन में आत्मा अपनी खोती है।