Last modified on 26 जून 2007, at 03:01

विमाता के प्रति / अनिल जनविजय

रचनाकारः अनिल जनविजय

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

माँ, प्यारी माँ
मुझे अपनी शरण में ले

मैं सूखे सरोवर की हाँफ़ती मछली
इक लाल गुलाब की सूखी हुई कली
अपनी स्नेहमयी गंध मुझमें भर दे

माँ, प्यारी माँ
मुझे अपनी शरण में ले

लहूलुहान चिड़िया-सी यंत्रणा में हूँ
सोचती हूँ तेरी ख़ैरगाह में रहूँ
माँ तू मुझे बिम्ब अपना दे

माँ, प्यारी माँ
मुझे अपनी शरण में ले


भूल नहीं पाती मैं अपना व्यतीत
तेरे कंठ से फूटता पवित्र संगीत
मुझको तू अपनी हरीतिमा दे

माँ, प्यारी माँ
मुझे अपनी शरण में ले